Top Shodashi Secrets

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क्षीरोदन्वत्सुकन्या करिवरविनुता नित्यपुष्टाक्ष गेहा ।

The anchor on the appropriate hand exhibits that the person is concerned with his Convalescence. If made the Sadhana, will get the self confidence and every one of the hindrances and road blocks are taken off and many of the ailments are removed the symbol that is Bow and arrow in her hand.

The reverence for Goddess Tripura Sundari is apparent in the best way her mythology intertwines with the spiritual and social fabric, giving profound insights into the character of existence and the path to enlightenment.

दक्षाभिर्वशिनी-मुखाभिरभितो वाग्-देवताभिर्युताम् ।

In the event the Devi (the Goddess) is worshipped in Shreecharka, it is claimed to generally be the highest form of worship from the goddess. You'll find 64 Charkas that Lord Shiva gave for the people, in addition to distinct Mantras and Tantras. These got so the human beings could deal with attaining spiritual benefits.

ऐसा अधिकतर पाया गया है, ज्ञान और लक्ष्मी का मेल नहीं होता है। व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर लेता है, तो वह लक्ष्मी की पूर्ण कृपा प्राप्त नहीं कर सकता है और जहां लक्ष्मी का विशेष आवागमन रहता है, वहां व्यक्ति पूर्ण ज्ञान से वंचित रहता है। लेकिन त्रिपुर सुन्दरी की साधना जोकि श्री विद्या की भी साधना कही जाती है, इसके बारे में लिखा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण एकाग्रचित्त होकर यह साधना सम्पन्न कर लेता है उसे शारीरिक रोग, मानसिक रोग और कहीं पर भी भय नहीं प्राप्त होता है। website वह दरिद्रता के अथवा मृत्यु के वश में नहीं जाता है। वह व्यक्ति जीवन में पूर्ण रूप से धन, यश, आयु, भोग और मोक्ष को प्राप्त करता है।

The choice of mantra kind is just not basically a make any difference of preference but demonstrates the devotee's spiritual objectives and the nature in their devotion. It's a nuanced aspect of worship that aligns the practitioner's intentions with the divine energies of Goddess Lalita.

॥ अथ श्री त्रिपुरसुन्दरीवेदसारस्तवः ॥

कामाकर्षिणी कादिभिः स्वर-दले गुप्ताभिधाभिः सदा ।

श्रीं‍मन्त्रार्थस्वरूपा श्रितजनदुरितध्वान्तहन्त्री शरण्या

प्रणमामि महादेवीं मातृकां परमेश्वरीम् ।

केयं कस्मात्क्व केनेति सरूपारूपभावनाम् ॥९॥

॥ ॐ क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं श्रीं ॥

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१०॥

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